41 मिनट पहले
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अमेरिका में ओहायो के मैन्सफील्ड सीनियर हाई स्कूल में स्टूडेंट्स कुछ अलग और अनोखा सीख रहे हैं- प्रॉपर नींद कैसे लेनी है। आजकल जहां टीनएजर्स ग्रुप चैट्स के दौरान सो भी सकते हैं और बिना नींद लिए लंबे समय तक टिक-टॉक या इंस्टाग्राम रील्स स्क्रोल भी कर सकते हैं। ऐसे में स्लीप क्लासेज उनके फोकस, खुशी और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं।
इस अनिवार्य किए गए हेल्थ कोर्स को पढ़ाने वाले टोनी डेविस ‘स्लीप टू बी बेटर यू’ नाम का करिकुलम फॉलो कर रहे हैं। वो कहते हैं, ‘सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि हाई स्कूल के बच्चों को हम सोना कैसे है ये सिखा रहे हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कितने बच्चे असल में जानते ही नहीं कि सोना कैसे है।’
टीन्स के लिए 6 घंटे की नींद काफी नहीं- रिसर्च

रिसर्च में सामने आया कि आजकल ज्यादातर टीनएजर्स सिर्फ 6 घंटे की ही नींद ले रहे हैं जबकि उन्हें 8 से 10 घंटे की नींद की जरूरत है।
दरअसल, किशोरावस्था आने पर उनकी बॉडी की क्लॉक शिफ्ट होती है जिसकी वजह से वो जल्दी नहीं सो पाते हैं। इसके अलावा इस उम्र में उनका शेड्यूल भी बिजी हो जाता है। स्ट्रेस, स्क्रीन टाइम और एकेडमिक प्रेशर की वजह से न सिर्फ उनके मूड बल्कि आराम करने के तरीके पर भी असर पड़ता है।
ऐसे में नींद न आना कोई छोटी बात नहीं है। इससे एंग्जायटी, डिप्रेशन, रिस्की बिहेवियर, स्पोर्ट्स इंजरी और ड्राइविंग करते समय एक्सिडेंट तक हो सकता है। एक्सपर्ट्स तो यहां तक मानते हैं कि स्टूडेंट्स की खराब मेंटल हेल्थ के लिए सोशल मीडिया से ज्यादा नींद से जुड़ी आदतें जिम्मेदार हैं।

‘यूट्यूब की वजह से नहीं आ रही थी नींद’
नेथन बेकर नाम के एक स्टूडेंट को इस क्लास के जरिए एक दिन महसूस हुआ कि रात में लंबे समय तक यूट्यूब देखने की वजह से वो आधी रात तक भी सो नहीं पाता। ऐसे में उसने कोर्स की सीख खुद के ऊपर लागू की। सोने से लंबे समय पहले वो अपने आसपास की सभी स्क्रीन्स बंद करने लगा, रात में हल्का खाना खाने लगा और शांतिपूर्ण म्यूजिक सुनने लगा।
इसके बाद उसे 7 घंटे की प्रॉपर नींद आती है और वो अगले दिन स्कूल में बेहतर महसूस करता है। इसे लेकर नेथन ने कहा, ‘जीवन अब आसान लग रहा है।’
नींद की कमी से चिड़चिड़े हो जाते टीनएजर्स
स्लीप एक्सपर्ट्स का कहना है कि चिड़चिड़ापन, जल्दबाजी या मोटिवेशन की कमी जरूरी नहीं कि टीनएज का ही लक्षण हों। नींद की कमी की वजह से भी ऐसा हो सकता है।
स्लीप एक्सपर्ट कायला वालस्टोर्म कहती हैं कि टीनएजर्स अपनी थकान को वैसे ही जाहिर करते हैं जैसे कि कोई बच्चे नखरे दिखाता है। बस नखरे दिखाने का उनका तरीका थोड़ा ग्रोन-अप होता है।
वालस्टोर्म की ये बात कई स्टडीज में साबित भी हुई है। नींद की कमी की वजह से प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स पर असर पड़ता है। ये दिमाग का वो हिस्सा है जो फैसला लेने के लिए जिम्मेदार है। इसी के साथ नींद की कमी से दिमाग के एमिगडाला के हिस्सा में एक्टिविटी बढ़ जाती है। ये वो हिस्सा है जो डर और एंग्जायटी को प्रोसेस करता है।
सिर्फ स्क्रीन टाइम कम करने से नहीं आएगी नींद

मोबाइल फोन अब सभी की जिंदगी में एक अहम रोल अदा करते हैं। इस स्लीप क्लास में आने वाले 60% स्टूडेंट्स ने माना कि वो फोन को देखते-देखते ही सोते हैं और फोन के अलार्म से ही सुबह उठते हैं।
फोन ही अकेले समस्या नहीं है। स्टूडेंट्स हर दिन एकेडमिक लोड, स्पोर्ट्स और स्कूल के बाद भी ढेरों एक्टिविटीज में लगे रहते हैं।
चेस कोल नाम का एक स्टूडेंट फुटबॉल खेलता है। वो ढेरों एड्वांस्ड क्लासेज लेता है और उसके बाद घंटों प्रैक्टिस भी करता है। इसके बाद रात में सेल्फ-स्टडीज करता है। उसने कहा, ‘ऑनर्स क्लासेज, कॉलेज की तैयारी और स्पोर्ट्स तीनों चीजें एक साथ मैनेज करना मुश्किल और थकाने वाला है।’
एक अन्य स्टूडेंट अमीलिया राफेल कहती हैं कि दिन के 24 घंटे उन्हें कम लगते हैं। इसकी वजह से उन्हें नींद कुर्बान करनी पड़ती है। वो अक्सर रात के 2 बजे तक ही सो पाती हैं।
US के कई स्कूलों में फ्री स्लीप क्लासेज
टीनएजर्स को बेहतर नींद से जुड़ी क्लासेज सिर्फ मैन्स फील्ड सीनियर हाई स्कूल में ही नहीं पढ़ाई जा रही। बल्कि कई दूसरे स्कूलों में भी ये क्लासेज अब आम हो गई हैं।
मिनिसोटा के कई स्कूलों में स्लीप एक्सपर्ट कायला वालस्टोर्म का स्लीप से जुड़ा करिकुलम फ्री में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। न्यूयॉर्क के स्कूलों में भी वेलनेस एक्टिविटी के तौर पर स्कूलों में स्लीप एजुकेशन शुरू किया गया। स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ सुधारने के लिए मैसेचुसेट्स, वॉशिंगटन और ओरिगन में भी स्लीप अवेयरनेस को लेकर कोर्स शुरु किए जा चुके हैं।
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