आजकल लोग अपने घरों में अलग-अलग पालतू जानवर रखते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में कुत्तों को पालने का चलन काफी बढ़ गया है. खासकर विदेशी नस्लों के कुत्तों की मांग तेजी से बढ़ी है. हालांकि, कुछ नस्लें स्वभाव से आक्रामक होती हैं, इसलिए उन्हें विशेष प्रशिक्षण की जरूरत होती है. जालना शहर में दो महिलाएं, गीतांजलि देशमुख और मृगनयनी राजे, इस जरूरत को पूरा करने के लिए एक अनूठा प्रशिक्षण केंद्र चला रही हैं.
पुरुष प्रधान क्षेत्र में महिलाओं की पहल
यह क्षेत्र आमतौर पर पुरुषों का माना जाता है, लेकिन इन दोनों महिलाओं ने अपनी मेहनत और जुनून से इसे अपना बना लिया. गीतांजलि देशमुख जालना के धवेडी गांव में रहती हैं और पिछले दस सालों से वहीं रह रही हैं. इससे पहले, वह अपने पति की नौकरी के कारण 25 साल तक मुंबई में रहीं. बचपन से ही उन्हें जानवरों से गहरा लगाव था. मुंबई में रहने के दौरान उनके पास कई कुत्ते थे, लेकिन जब उन्हें शहर से बाहर जाना होता, तो उनके लिए कोई भरोसेमंद देखभालकर्ता नहीं मिलता था.
दोस्ती से शुरू हुआ कारोबार
इसी परेशानी के चलते एक कार्यक्रम में उनकी मुलाकात मृगनयनी राजे से हुई, जिनका भी कुत्तों के प्रति वही प्यार और समर्पण था. दोनों ने मिलकर एक ऐसा प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने का फैसला किया, जहां विभिन्न नस्लों के कुत्तों को ट्रेनिंग दी जा सके. इस केंद्र में हर तरह के कुत्तों को प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे पालतू जानवरों के मालिकों को काफी राहत मिली है.
प्रशिक्षण केंद्र की सफलता
इस केंद्र में प्रशिक्षण कार्य मुख्य रूप से मृगनयनी राजे संभालती हैं, जबकि गीतांजलि देशमुख प्रशासनिक जिम्मेदारी देखती हैं. अब तक मुंबई, पुणे, नागपुर, नासिक, छत्रपति संभाजीनगर, इंदौर, नोएडा जैसे बड़े शहरों से लोग अपने कुत्तों को ट्रेनिंग के लिए यहां भेज चुके हैं. कुत्तों की नस्ल और उनकी ट्रेनिंग के आधार पर शुल्क 25,000 रुपये तक लिया जाता है, जबकि उनके भोजन का खर्च अलग से होता है. इस बिजनेस से दोनों महिलाएं हर महीने करीब 1 से 1.5 लाख रुपये की कमाई कर रही हैं.
जुनून से बना करियर
गीतांजलि देशमुख कहती हैं कि उन्होंने यह काम पैसों के लिए नहीं, बल्कि अपने जुनून के कारण चुना. हालांकि, यह काम आसान नहीं है. कई नस्लें काफी आक्रामक होती हैं, जिससे काटे जाने का खतरा बना रहता है. साथ ही, यह क्षेत्र पुरुषों का माना जाता है, इसलिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. कई बार उन्होंने यह काम छोड़ने के बारे में भी सोचा, लेकिन अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से वे आज भी इस क्षेत्र में मजबूती से खड़ी हैं.