सूरत: आज के समय में युवतियां और महिलाएं अपने रूप और त्वचा की देखभाल के लिए बाजार में मिलने वाले केमिकलयुक्त साबुन और शैंपू का उपयोग करती हैं, जो कई बार नुकसानदायक साबित होते हैं. ऐसे में आयुर्वेदिक पद्धति और घरेलू नुस्खों से बने हर्बल साबुन और शैंपू महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं. खासकर ऋतु के अनुसार बने नीम, एलोवेरा, केसुडा, फेशियल और गिलक के जाल से बने साबुन की मांग बढ़ रही है. ये साबुन न केवल त्वचा को ठंडक, पोषण और सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं के लिए आर्थिक स्वावलंबन का साधन भी बन रहे हैं. इस लेख में जानेंगे कि कैसे आयुर्वेदिक साबुन महिलाओं की त्वचा की देखभाल और आजीविका का नया मार्ग खोल रहे हैं.
आयुर्वेदिक साबुन: केमिकलयुक्त साबुन का हर्बल विकल्प
बाजार में मिलने वाले अधिकांश साबुन केमिकल और कास्टिक आधारित होते हैं, जो केवल झाग पैदा करते हैं, लेकिन त्वचा को कोई खास फायदा नहीं पहुंचाते. विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे साबुन कई बार त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे सूखापन, खुजली या एलर्जी. दूसरी ओर, आयुर्वेदिक साबुन नीम, एलोवेरा, केसुडा, गिलक जैसी औषधियों से बनाए जाते हैं, जो एंटीबैक्टीरियल, एंटिफंगल और ठंडक देने वाले गुणों से भरपूर होते हैं. गर्मियों के मौसम में ये साबुन त्वचा को पोषण, नर्मी और ठंडक प्रदान करते हैं, जिसके कारण महिलाएं इन्हें अधिक पसंद कर रही हैं. कोरोना काल के बाद आयुर्वेदिक उत्पादों का चलन बढ़ा है और महिलाओं ने आयुर्वेद पर अपना विश्वास बढ़ाया है, जिसके कारण आयुर्वेदिक साबुन और शैंपू रामबाण औषधि की तरह काम कर रहे हैं.
ऋतु के अनुसार आयुर्वेदिक साबुन की लोकप्रियता
आयुर्वेदिक साबुन की बनावट की प्रक्रिया प्राचीन और लंबी होती है, जिसके कारण इसे तैयार करने में अधिक समय लगता है. ये साबुन थोड़े कठोर होते हैं और इनमें झाग कम बनता है, लेकिन ये गुणों से भरपूर होते हैं. वर्तमान में बाजार में सॉफ्ट आयुर्वेदिक साबुन भी उपलब्ध हैं, जो अधिकांशतः महिलाओं द्वारा तैयार किए जाते हैं. खासकर ऋतु के अनुसार बने साबुन, जैसे नीम, एलोवेरा, केसुडा, फेशियल और गिलक के जाल से बने साबुन की मांग बहुत बढ़ रही है. नीम और एलोवेरा एंटीबैक्टीरियल और एंटिफंगल गुणों से भरपूर होते हैं, जो त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं, जबकि केसुडा गर्मियों की गर्मी में ठंडक प्रदान करता है. गिलक के जाल से बने साबुन खुजली, फटी एड़ियों और डेड स्किन को दूर करने में प्रभावी होते हैं, और ये इको-फ्रेंडली होने के कारण पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाते.
सखी मंडल से जुड़ी महिलाएं आयुर्वेदिक साबुन बनाकर घरेलू आय का स्रोत खड़ा कर रही हैं. मोक्षा सखी मंडल की सदस्य सैजल गामित लोकल 18 से बात करते हुए बताती हैं कि, “गर्मियों में नीम, एलोवेरा और केसुडा के साबुन की मांग बहुत बढ़ जाती है, क्योंकि ये साबुन एंटीबैक्टीरियल, एंटिफंगल और ठंडक देने वाले गुणों से भरपूर होते हैं. फेशियल साबुन और गिलक के जाल से बने साबुन भी बहुत लोकप्रिय हैं, खासकर खुजली और फटी एड़ियों की समस्या वाले लोगों के लिए.” उनका मंडल 10 बहनों की टीम के साथ काम करता है और रोजाना 400 से 500 साबुन बनाता है, जिससे महीने में 10,000 से 15,000 रुपये की आय होती है. इन साबुनों में मुल्तानी मिट्टी, दूध, विटामिन E कैप्सूल जैसे घटक मिलाकर इसके फायदे बढ़ाए जाते हैं, और समय की मांग के अनुसार इंग्रेडिएंट्स में बदलाव भी किए जाते हैं.
गिलक का साबुन इको-फ्रेंडली और त्वचा के लिए फायदेमंद
बाजार में मिलने वाले रेडीमेड लूफा या बाथ स्क्रब प्लास्टिक या नायलॉन के बने होते हैं, जिससे एलर्जी की समस्या हो सकती है. दूसरी ओर, गिलक के जाल से बने साबुन डेड स्किन को दूर करने में मदद करते हैं, खुजली और फटी एड़ियों की समस्या को कम करते हैं, और इको-फ्रेंडली होने के कारण पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते. ये साबुन बायोडिग्रेडेबल होने के कारण प्रदूषण कम करने में भी योगदान देते हैं. ऐसे साबुन की लोकप्रियता महिलाओं में बढ़ रही है, क्योंकि ये पर्यावरण के अनुकूल और त्वचा के लिए सुरक्षित हैं.
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आयुर्वेदिक साबुन का आर्थिक और सामाजिक योगदान
सखी मंडल जैसे समूहों द्वारा आयुर्वेदिक साबुन बनाने का काम महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन प्रदान कर रहा है. ये महिलाएं घर बैठे अपने कौशल का उपयोग करके परिवार की आय में योगदान दे रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं. इसके अलावा, आयुर्वेदिक साबुन का उत्पादन स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देता है. मोक्षा सखी मंडल जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि कैसे छोटे पैमाने पर शुरू किया गया काम महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना सकता है.