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वीर लोरिक, छठवीं शताब्दी के वीर योद्धा ने अत्याचारी राजा को हराकर मंजरी से विवाह किया. उनकी तलवार में देवी का वास माना जाता था. उन्होंने एक विशाल पत्थर को दो टुकड़ों में काटकर अपने प्रेम की अमर निशानी छोड़ी.

महानायक वीर लोरिक का इतिहास
सनन्दन उपाध्याय/बलिया- बलिया के रहने वाले वीर लोरिक एक महान वीर नायक थे. उनकी प्रेम कहानी और वीरता की गाथा आज भी प्रचलित है. वीर लोरिक के प्रेम की अमिट निशानी आज भी सोनभद्र में मौजूद है. मान्यता है कि “वीर लोरिक की तलवार में साक्षात् भगवती का वास था.” वे अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करते थे. ‘लोरीकी’ और ‘लोरिकायन’ जैसी महान गाथाएं वीर लोरिक के जीवन पर आधारित हैं, जिनका गुणगान आज भी यादव समाज करता है.
वीर लोरिक का जन्म और पराक्रम
प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार, छठवीं शताब्दी में वीर लोरिक का जन्म बलिया जिले के सिकंदरपुर तहसील के गौरा गांव में हुआ था. वे दो भाई थे लोरिक और सवरू. उस समय यादवों को चरवाहा कहा जाता था. वीर लोरिक अपनी शारीरिक शक्ति और पराक्रम के कारण न केवल बलिया ही नहीं बल्कि समस्त महाजनपदों में प्रसिद्ध थे.
तलवार में था साक्षात भगवती का वास
इतिहास के अनुसार, वीर लोरिक भृगु और विंध्य क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त कर चुके थे. आज भी बलिया में वीर लोरिक अखाड़ा, वीर लोरिक की प्रतिमा और वीर लोरिक स्पोर्ट्स स्टेडियम उनकी यादों को जीवंत बनाए हुए हैं. बलिया की ब्राह्मणी देवी को वीर लोरिक की आराध्य देवी माना जाता है. मान्यता है कि उनकी तलवार में साक्षात दुर्गा देवी का वास था.
अत्याचारी राजा से बचाने की अपील
उस समय सोनभद्र जिले में एक अत्याचारी राजा शासन करता था, जिसने एक गरीब लड़की मंजरी पर बुरी नजर डाल रखी थी. राजा जबरन उससे विवाह करना चाहता था. मंजरी ने वीर लोरिक को संदेश भेजकर मदद की गुहार लगाई. वीर लोरिक, जो हमेशा अन्याय और अत्याचार के खिलाफ खड़े रहते थे, तुरंत मंजरी की रक्षा के लिए निकल पड़े.
अत्याचारी राजा को हराकर मंजरी से विवाह
मंजरी की सूचना मिलते ही वीर लोरिक ने अगोरी के राजा मोलागत को युद्ध में पराजित कर मार डाला और मंजरी से विवाह किया. विवाह के बाद जब वे बलिया लौट रहे थे, तो मारकुंडी घाटी में कुछ समय के लिए आराम करने रुके.
तलवार से काटा विशाल पत्थर
मंजरी ने अपने प्रेम की निशानी बनाए रखने के लिए वीर लोरिक से कहा कि वे अपनी तलवार से एक विशाल पत्थर को काट दें. मंजरी के अनुरोध पर वीर लोरिक ने अपने तलवार के एक ही वार में विशालकाय पत्थर को दो भागों में विभाजित कर दिया. यह पत्थर आज भी ‘वीर लोरिक पत्थर’ के नाम से प्रसिद्ध है और सच्चे प्रेम और वीरता का प्रतीक बना हुआ है.
वीर लोरिक की गाथा आज भी अमर
वीर लोरिक की प्रेम कहानी और वीरता की गाथा आज भी देश-विदेश में प्रसिद्ध है. वे केवल एक महान योद्धा ही नहीं बल्कि सच्चे प्रेम के प्रतीक भी थे. उनकी गाथा आज भी यादव समाज में सम्मान और भक्ति के साथ गाई जाती है और उनकी बहादुरी को युगों-युगों तक याद किया जाएगा.
Ballia,Uttar Pradesh
March 17, 2025, 17:45 IST