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लोहाघाट के लोहे के बर्तनों की मांग तेजी से बढ़ रही है. पूर्णागिरि स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पारंपरिक तरीके से बर्तन बनाती हैं. इनकी गुणवत्ता और सेहतमंद उपयोग के कारण राष्ट्रीय पहचान मिली है.

लोहाघाट के पारंपरिक रूप से बने लोहे के बर्तन कुमाऊं में काफी प्रसिद्ध है
हाइलाइट्स
- लोहाघाट की महिलाओं ने लोहे के बर्तनों की मांग बढ़ाई.
- पारंपरिक विधि से बने बर्तन सेहत के लिए फायदेमंद.
- महिलाओं को मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने सम्मानित किया.
हल्द्वानी: उत्तराखंड के चंपावत जिले के लोहाघाट में सदियों से तैयार होने वाले लोहे के बर्तनों की मांग इन दिनों तेजी से बढ़ रही है. इन बर्तनों की खासियत यह है कि ये पूरी तरह पारंपरिक तरीके से बनाए जाते हैं और इनके उपयोग को सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद माना जाता है. नैनीताल जिले के हल्द्वानी में चल रहे सरस मेले में लोहाघाट के पूर्णागिरि स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने अपने बर्तनों का स्टॉल लगाया है, जहां कई तरह के लोहे के बर्तन मिल रहे हैं.
उत्तराखंड का अल्मोड़ा तांबे के बर्तनों के लिए मशहूर है, वहीं लोहाघाट के लोहे के बर्तनों की भी अपनी अलग पहचान है. सदियों से लोहाघाट में ये बर्तन हाथों से तैयार किए जाते हैं, यही वजह है कि बाजार में इनकी खास डिमांड है.
महिलाओं की मेहनत से मिली राष्ट्रीय पहचान
पूर्णागिरि स्वयं सहायता समूह की संचालिका नारायणी देवी ने बताया कि उनके समूह द्वारा लोहे की कढ़ाई, तवा, परात, फ्राई पैन, चाकू, चिमटे, दरांती, बसूला और अन्य औजार बनाए जाते हैं. ये बर्तन पूरी तरह से पारंपरिक विधि से तैयार किए जाते हैं. जिसमें पहले लोहे की चादर को चीड़ की छाल में पकाया जाता है, फिर उसे हथौड़े से पीट-पीटकर सही आकार दिया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद बर्तन तैयार होते हैं.
इन बर्तनों में बना खाना ज्यादा स्वादिष्ट होता है, इसलिए इनकी बाजार में काफी डिमांड रहती है. इस व्यवसाय से लगभग 200 परिवार जुड़े हुए हैं, जो अपनी मेहनत और कारीगरी से लाखों की कमाई कर रहे हैं. आगे नारायणी देवी बताती हैं कि यह उनका पारंपरिक खानदानी काम है. पहले यह व्यवसाय सिर्फ स्थानीय स्तर पर सीमित था, लेकिन अब इसे ऑनलाइन भी उपलब्ध करा दिया गया है, जिससे इसकी मांग पूरे भारत में बढ़ गई है.
आगे उन्होंने बताया कि बाजार में फैक्ट्रियों में बने लोहे के बर्तन उपलब्ध हैं, लेकिन लोहाघाट में सदियों से हाथों से तैयार किए जा रहे बर्तनों की गुणवत्ता और महत्व अलग ही है. समूह की महिलाएं देशभर में होने वाली प्रदर्शनियों और मेलों में अपने बर्तनों का स्टॉल लगाती हैं, जिससे इन बर्तनों की पहचान उत्तराखंड तक सीमित न रहकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गई है.
सरकार ने भी किया सम्मानित
लोहाघाट की महिलाओं ने अपनी मेहनत और कला से इस पारंपरिक व्यवसाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. आत्मनिर्भरता की यह कहानी अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही है. महिलाओं के इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री सहित वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तराखंड के राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.
अब समूह द्वारा लोहे के कुकर भी तैयार करने की योजना बनाई जा रही है, जिससे लोगों को सेहतमंद भोजन पकाने का एक और बेहतर विकल्प मिलेगा.